सोचिए एक मां गर्भ में बच्चे के आते ही उसके लिए कितने संघर्ष करती है। पेट में पल रहे बच्चे के लिए 9 महीने तक अपने खानपान, रहन सहन सहित हर प्रकार का समझौता करती है। वह हर पल पेट में पल रहे बच्चे के लिए जीती है।
वहीं मां के गर्भ से निकल कर नई दुनिया में आते ही बच्चा का नया संघर्ष शुरू हो जाता है। सोचिए कुदरत ने इंसान को हर प्रकार की परिस्थिति से लड़ने और संघर्ष करने के लिए कैसी शक्ति प्रदान की है।
बच्चा मां के पेट से बाहर आते ही नए वातावरण से लड़ना शुरू कर देता है। एक मां जब बच्चे को जन्म देती है तो उसकी योनी या वजाइना से एक तरल पदार्थ निकलता है।
इस तरल पदार्थ में ऐसे बैक्टीरिया होते हैं, जो बच्चे के अंदर बीमारियों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाने का काम करते हैं। वहीं जिन बच्चों का जन्म आॅपरेशन से होता है, उन्हें मां से यह नेमत हासिल नहीं हो पाती है।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिन बच्चों की नार्मल डिलिवरी होती है, वो बच्चे मां के वजाइना से निकलने वाले लिक्विड के सम्पर्क आते हैं। ये लिक्विड बच्चों का कम से कम एक साल तक रोगों से लड़ने की ताकत देता है।
वहीं जिन बच्चों की डिलिवरी सिजेरियन यानि आॅपरेशन से होती है। उन्हें कई प्रकार का संघर्ष करना पड़ता है। मतलब बच्चे के स्वास्थ्य के लिए सिजेरियन डिलिवरी की अपेक्षा नार्मल डिलिवरी रामबाण है।
मां के वजायना से निकलने वाला बैक्टीरिया बच्चे के लिए कितना जरूरी है? बीबीसी वेबसाइट में प्रकाशित खबर के मुताबित इस पर ब्रिटेन से कनाडा तक के वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं।
ऐसा ही एक प्रयोग ब्रिटेन की बर्मिंगम यूनिवर्सिटी में किया गया। कुदरत तौर पर योनि से निकलने वाले इस लिक्विड और वजाइनल सीडिंग से पैदा किए गए लिक्विड की तुलना की गई। देखा गया कि दोनों के बीच काफी फर्क था।
नार्मल डिलिवरी कैसे है फायदेमंद? -: नार्मल डिलिवरी में समय नवजात बच्चे का कीटाणुओं से पहला सामना मां की योनि और आंतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया से मुखातिब होता है। जबकि सिजेरियन डिलिवरी में बच्चे का बैक्टीरिया से पहला सामना त्वचा पर पाए जाने वाले बैक्टीरिया से होता है।
इस तरह दोनों के बीच काफी अंतर है। एक रिसर्च के मुताबिक आॅपरेशन से पैदा होने वाले बच्चों में सांस की तकलीफ जल्दी पैदा होती है। साथ ही बच्चा किसी भी प्रकार की एलर्जी का जल्दी शिकार होता है।
इसकी मुख्य वजह नवजात के पैदा होते समय मां के योनि से निकलने वाले तरह पदार्थ से वंचित रहना है। आपको बता दें कि किसी भी शरीर की बुनियाद कोशिकाओं से होती है और कोशिकाओं से मिलकर जीनोम यानि जीन बनता है।
इंसान की किसी भी कोशिका में करीब 20 हजार जीनोम होता है। इससे ही इंसान की बनावट तय होती है।
योनि और खाने की नली के रास्ते बैक्टीरिया से होता है पहला सामना-:
प्रतीकात्मक
किसी भी इंसान की रोगों के लड़ने की ताकत और कीटाणुओं का पहला आमना-सामना काफी महत्वपूर्ण होता है। पैदा होने के दौरान बच्चे का बैक्टीरिया से पहला आमना सामना मां की योनि और खाने की नली के रास्ते में होता है।
बैक्टीरिया से यह पहला आमना सामना उसके जीवन का इम्तिहान कह सकते हैं। ये नये जीव और कीटाणुओं के बीच होने वाला टकराव ही नहीं बल्कि दोनों के बीच संघर्ष के गहरे रिश्ते की निशानी है।
बैक्टीरिया मां के दूध से चीनी खा जाता है-: एक रिसर्च के मुताबिक बच्चों में बाइफिडोबैक्टीरिया सबसे ज्यादा कारगर होता है। यह बच्चे के शरीर में पहले दिन ही प्रवेश कर लेता है। ऐसा माना जाता है कि बाइफिडोबैक्टीरिया मां के दूध की चीनी खा लेता है।
इस तरह मां का दूध बच्चे के लिए अमृत की तरह काम करता है। बाइफिडोबैक्टीरिया मां से ही बच्चे में प्रवेश करता है। यह बच्चे को कई तरह के स्वस्थ रखने का काम करता है।