भारत के लाल किले की प्राचीर पर लहराने वाले राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण किसी सामान्य धागे से नहीं किया जाता। तिरंगा झंडा खादी या हाथ से काते गए कपड़े से ही बनाने का नियम है। झंडा बनाने में दो तरह के खादी का उपयोग किया जाता है।
एक वह खादी, जिससे कपडा बनता है और दूसरा है खादी-टाट, जो बेज रंग का होता है। इसे खम्भे में पहनाया जाता है। आपको बता दें कि खादी टाट की बुनाई सामान्य नहीं होती।
यह एक असामान्य प्रकार की बुनाई है जिसमें तीन धागों के जाल जैसे बनते हैं। यह परम्परागत बुनाई से बिल्कुल अलग है, यहां दो धागों को बुना जाता है। इस प्रकार की अत्यंत दुर्लभ बुनाई करने वाले बुनकर भारत में एक दर्जन से भी कम हैं।
निर्देश के अनुसार बुनाई प्रति वर्ग सेंटीमीटर में 150 सूत्र होनी चाहिए। इसके अलावा कपड़े में प्रति चार सूत्र और एक वर्ग फुट का शुद्ध भार 205 ग्राम ही होना चाहिये। इस बुनी खादी को केवल धारवाड़ के निकट गदग से और उत्तरी कर्नाटक के बागलकोट जिलों से ही प्राप्त किया जाता है।
बुनाई पूरी होने के बाद, सामग्री को परीक्षण के लिए भारतीय मानक ब्यूरो यानि बीआईएस प्रयोगशालाओं में भेजा जाता है। कड़े गुणवत्ता परीक्षण करने के बाद, यदि झंडा अनुमोदित हो जाता है तो, उसे कारखाने वापस भेज दिया जाता है।
तब उसे प्रक्षालित कर संबंधित रंगों में रंग दिया जाता है। केंद्र में अशोक चक्र को स्क्रीन मुद्रित, स्टेंसिल्ड या काढ़ा जाता है। विशेष ध्यान इस बात को दिया जाना चाहिए कि चक्र अच्छी तरह से मिलता हो और दोनों तरफ ठीक से दिखाई देता हो।
बीआईएस झंडे की जाँच करता है और तभी वह बेचा जा सकता है। वर्तमान में, हुबली में स्थित कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ को ही एक मात्र लाइसेंस प्राप्त है जो झंडा उत्पादन और आपूर्ति करता है।
आपको बता दें कि भारत में झंडा विनिर्माण इकाइयों की स्थापना की अनुमति खादी विकास और ग्रामीण उद्योग आयोग के द्वारा दिया जाता है। वहीं अगर दिशा निर्देशों का ठीक से पालन नहीं किया गया तो बीआईएस को इन्हें रद्द करने का भी अधिकार है।